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मिश्रबंधु-विनोंद

• मिश्रबंधु-विनोद तुलसीदास संबंधी वर्तमान कान्ह के कथन से प्रकट है कि भङ्ग । साल उनके समय में बनी, सो इसका समय उनके भरण-मछ १६८० के पूर्व है। उधर बिटुलेश का देहांत संवत् १६४२ में हुआ और तब गिरिधरजी गद्दी पर बैठे । भक्कमाल इस समय के पीछे इन । नाभजी के शिष्य प्रियादास ने संवत् १७६६ में भक्कमाल की टीका बनाई। इससे नाभादास का संदत् १७२० के लगभग शरीरांत होना अनुमान-सिद्ध माना जा सकता हैं । नाभादास को नारायणदास भी कहते हैं। उन्होंने यह भी लिखा है कि नाभा- . दासजी का समय संवत् १७०० तक है । ये महाशय अग्रदासजी के शिष्य थे । इनकी जाति के विषय में बहुतों का मत है कि ये होम थे, क्योंकि मक्कमाल में इनके प्रसिद्ध समकालीन टीकाकार ने इन्हें हनुमानवंशी लिखा है और माड़वारी भाषा में होम-शब्द का प्रयोजन हनुमान है। एक टीकार ने इनके विषय में यह भी लिखा है कि वैष्णवों की जाति-पाति वक्रय नहीं है। इन्हीं की आशा से इनके शिष्य प्रियादासजी ने भकमाल की टीका संवत् १७६३ में लिखी । जान पड़ता है कि इन्होंने आशा पहले दे रक्खी। थी और टीका पीछे तैयार हुई । भक्कमाल के मूड में ३१६, छंद और टीका में ६२४ छंद हैं, जिनमें प्रायः सभी घनाक्षरी हैं । टीका में प्रियादास ने अर्थ न लिखकर जिन भक्नों का वर्खने मूल में... सूक्ष्माया हुआ है, उन्हीं का विस्तार-पूर्वक कथन किया हैं और इनके विषय में बहुत-सी नवीन बातें लिखी हैं। अतः मूल से टक्य, अधिक उपयोगी है। जिन भक्कों के नाम ल्लिखे गए हैं उनमें से अधिक जर तीर सौ वर्षों के भफ्तिर के ही हैं और इस ग्रंथ से प्रायः ... किसी भी विख्यात अक्ल का नाम छुट नहीं रहा है। अतः वसीय संप्रदाय तथा और ऐसे-हो-ऐसे संप्रदायों, और पंर्थों के इञ्च स्थिर रने में यह अंय इच्छा ही उपकारी हैं। इसमें सूरदास-तुलसी-