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मिश्रबंधु-विनोंद

३१६ अवैधुविनोद प्रियादासजी . ..। वृंदावन ब्रज भूमि जानत न ऊ प्रिया , दई दरसाई जैसी सुक सुख शाई है रीति हूं उपासना की भारादत्त अनुसार, ..... लियो रस सार सो रसिक सुखदाई है । । झाझा प्रमु पाय पुनि गोपेश्वर लगे श्राय } . किंए ग्रंथ भाव भक्नेि भाँहि सब पाई हैं। एक-एक बात मैं समात अन बुद्धेि जद , .

  • पुलकित आत दृग झरी-सी लगाई है।
ये दोनों महात्मः भङ्गशिरोमाह होने के अतिरिक्त सुकवि भी .

• थे। इनके छंदों में कहीं-कहीं दोभंग जान पड़ता है, परंतु यह | छापनेवालों की अल्पता का फल है, न कि इनकी कविता का । . भक्कमल के बराबर पुण्यद ग्रंथ हिंदी में बहुत कम हैं । इसको .. पढ़ने से मनुष्य के विचार ठीक हो सकते हैं। यह बड़ा ही उत्तम ग्रंथ है । इस ग्रंथ की बहुत-सी अन्य टीकाएँ हुई हैं और दो अन्य टीकाओं के नाम शिवसिंहसरोज में भी लिखे हैं । संसार में इस ग्रंथ का जितना आदर किया हैं उसके ग्रह योग्य भी है। नाभा- दासजी में दो अष्टयाम भी बनाए जो हमने छत्रपूर में देखे हैं। इनमें से युक गद्य ब्रजभाषा में है और दूसरा छंदोबद्ध, विशेषतया . दोहा-वैपाइयों में । गद्य-ग्रंथ १६ बड़े पृष्ठों की है और पद्यवाला ५० दड़े पृ का । इनका राम-चरित्र के पद-नामक एक अर ग्रंथ द्वितीय त्रैवार्षिक खोज में मिला है। " तब श्री महाराज कुमार प्रथम बशिष्ट महाराज के चरन छुइ अनाम करत मासे पिंजरे पर वृद्ध समाज तिनको प्रनाम करत