पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३८७

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प्रौद माध्यमिक प्रकरण भये । फिरि श्रीराजाधिराज ३ के जोहार कस्कै श्रीमहेंद्रनाथ दशरथ जू के निटं बैठत भये ।। अवधपुरी झी सोभा जैसी ; कहि नहिं कहिं शैष श्रुते तैस् । रचित छौंद कुलधौत सोहावन । बिबिध रंग मति अति मनभावन । दिसि पिलि अप्रोद अनूपा । चलुब्बीस जब इस रूप में सुदसि नराम् सरडू सह पावनि : मनिय तीरथ परम सुहावनि । बिसे अलङ भृग २८ भूले : गुंजत अत-समूह हॉट फूडे । इरल श्रिबिधि सुधा सुम बारी । बिकसे डिबिंधि क्रूज मन हो । परिखा प्रति चहुँदिलि लसत कंचन कोट प्रक्स ; बिबिधि भाँति नग जगमगत अति गएर पुर पाल । दिब्य ऊटिक में कोट की शोभा हि न सिराय : '. चहुँदिस अद्भुत ऑति मैं अपने सुखदाय। । |... १८०) कादि इबक्स थे महाशय पिहानीं, ज़िल्ला हरदोई के रहनेवाले संवत् १६३५ ३ उत्पन्न हुए थे। ये सैयद इब्राहीम के शिष्य थे और कविता श्रादर- पॉय करते थे । इनके किसी मैथ को नाम झाले नहीं झुा है पर इन- का स्कुट क्राच्य परम मनोहर देखने में आया है। इनका कविता-मद्ध संवत् १६६० सुसमा चाहिर है इन इन्हें तोष अधि को अंध में रक्लो । गुन्द्र को न पूछे ऊ, औद्गुन की बात पूर्छ,' कहा भयो दुई, कलियुग में खरान हैं; : पोशी पुरान ज्ञान, ब्रुन में ढारि देत, गुरू च्वाइन को मा हुने हैं। ऋदिर झहत थास छछू कहिदे की नाही, जगत झीं होलि देखि चुप न मान है। |