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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु विनोद 1. खोलि देखी हि सब ओरन स भाँति-भाँति, | गुन ना हिरानो गुन-गाहक हेरानो है। लाम- १६६) अमरेश । । कविताकाद्ध--- १६६० विवरण–इनके छंद आलिदास हुज़ारा में मिलते हैं, पर कोई ग्रंथ नहीं मिलता है इनकी कविता मनोहर है। इनको तौष .: छवि की श्रेख में हैम रखते हैं। .....। उदाहरणा- कसि कुच कंची मै, बिरच दिमल होर, मालती के सुमन धरेई कुम्हिलाहगे । । गों गारु चंदन बगारु धनसारु अब, पळ उज्यारु नाम, छिति पर छाई ।। हरु धृर अगर अगर धूप बैठी कहा, अमरेस तेरे आजु भूलि-से सुभाइये ।। . सरद सुहाई साँझ आई सैज साजु अस,. . । कहत सुया के आँसु, बाके नैन आइये ।। नाम--{ १८२ } मुक़ामक्सिदास । कवितामाङ-१६६० विवरण---इनको अव्य गोस्लाई तुलसीदासजी ने पसंद किया था। ( १३ } राघवदास कुंभनदास के पौत्र थे। आपका कविता-काल संवत् १६६० के.जगमम समझना चाहिए। आपकी कविता उत्तम होती थी, पर वह इमारे देखने में नहीं आई । सम-{ १८४ प्रबीन । मॅथ-सार । अवकाग १६६।।