पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३९१

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प्रौद्ध झध्यमिअरणं अश्य पर बना है। इसमें १२० पृष्ठ हैं । नमिसाला एक प्रकार का छोय-अंथ हैं। बनारस-पद्धति का अधिक होल ज्ञान नहीं हो सको । बनारसीदास की कविता धर्मोपदेश से भरी है और पूरु- रूपेर प्रशंसनीय हैं। इनकी भाषा साधारण ब्रजभाषा है। इनके कई भजनों में भी अच्छी कविता की गई है। बहुत लोगों को मत है कि इंनको कविता नवरलाले छविय तक से समानता और सकती हैं, पर हमारी मत इस कथन से नहीं मिमता । फिर भी बनारसीदासी को हुए एक अच्छा, कवि तोद कवि की श्रेणी की उदाहरण-- . . - मौदू समझ सबद यह मेरा ; . ॐ तू देले इन आँखि साँ, तामें कुछ ने तैरा । पराधीन बद्ध इन अाँखन कों बिनु परकास्ट न सुकै । से परकास अगिनि रबि ससि को तू अपनो करि बू ।। तेरे इव; मुद्रित घट अंतर अंध रूप सृ डोलै ;

  • ते सहज खुर्दै वै आँखें कै गुरु से उति खोले ।

| दू ते हिरडै की आँखें ; जें करतें प्रश्न सुख संपति भ्रम की संपति नाचें । . जिव श्रॉखिन ल निरखि भेदं न ज्ञानी ज्ञान बिचारें । जिन लिन सो लवि, सरूप मुनि ध्यान धारना धार्दै । | .. . गद्य यथा... .. |' म्यद्दष्ट कहा सो सुन ३ संशय, विसोई, विश्नस चे तीन भाब मैं ना सो सम्यग्दृष्टी । संशय, विमोह, विभ्रम हो ' ताकी स्वरूङ दृष्टांत कर दिखाइयतु है सो सुनो । । अयर है बिचरि प्रीति साया ही में हार-जीत, लिए छ ति जैसे झारिज की जकरी