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मिश्रबंधु-विनोंद

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मिश्रबंधु-विनोद तो उसे भी उस विषय की सामग्री प्रचुरता से मिल सकती है। इन्हीं कारणों से साधारण कृवियों एवं ग्रंथों के भाभ छोड़कर इतिहसि का शुद्ध स्वरूप स्थिर देखा हमें अनावश्यक समझ पड़ा । फिर भी इतिहास का क्रम रखने को हमने कवियों का हाल समयानुसार लिखा है और ग्रंथ के आदि में एक संक्षिप्त इतिहास भी दे दिया है। इन कारणों से हमने इसका नाम इतिहास न रखकर “मिश्रबंधुविनोद रक्खा है, परंतु इसमें इतिहास ही की क्रम रखने एवं इतिहास-संबंधी सामग्री सन्निविष्ट रहने के कारण हमने इसका उपनाम *हिंदी-साहित्य का इतिहास” तथा “कवि-कीर्तनभी रक्खा है। | विषय पहनें हमारा विचार था कि प्रायः १०० कवियों की रचनाओं पर समालोचनाएँ लिखकर उन्हीं के सहारे इतिहास-ग्रंथ लिखें । सरस्वती से उद्धत लेख में भी यही बात कही गई है । पीछे से यह विचार उत्पन्न हुआ कि केवल उत्कृष्ट कवियों की भाषा आदि के जानने से हिंदी का पूरा हाल नहीं ज्ञात हो सकता । भाषा पर बड़े छवियों का प्रभाव अवश्य पड़ता है पर समय विशेष की भाषा वही कहीं और सकती है, जो सर्वसाधारण के व्यवहार में हों । इस विचार से भी छोटे-बड़े सभी कवियों का वर्णन हमें अवश्यक आन पढ़ा । पहले हमने उन सभी कवियों की रचनाओं पर समालोचनाएँ लिखने का विचार किया था जिनका वर्णन इस ग्रंथ में हुआ है और * इसी दृष्टि से कार्यारंभ भी हुआ था, पर पीछे से यह आपत्ति अ पड़ी कि हमें बहुत-से उन कवियों के भी हाल लिखने पड़े, जिनके अंथ हमने नहीं देखे हैं, अथवा ॐ लेख लिखने के समय हमें प्राप्त नहीं हो सके । वहुत-से ऐसे भी कवि थे कि जिनके ग्रंथ तो भारी थे, परंतु उनमें तादृश कान्योत्कर्ष न था जिससे उन पर विशेष श्रम अपना समय का अपव्यय समझ पड़ा । संवत् १६६२-६३ में हो