पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/४०३

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प्रौद्ध आध्यमिप्रकरण : नाकाल----१६६६ कै लमये । विवरण—बनारसीदास के समसामयिक तथा जैन-धर्म के मर्मज्ञ | पंडित थे। उदाहरण---- चेतन चित परिचय दैिना अद् तर सबै न्दिरल्छ । ., कुन दिन तुस जिझि फटक हैं अावें कछ न इथे । चैतुन लो परिचय दड़ अह भये ब्रत झारे । सालि बिट्टन खेत की वृथा अनवड़ वारि । बिना तव परिक्ष्य रूह अफ्र भाव अश्विास है । लाभ और रस च हैं अमृत ३ चाख्यो म । भ्रम तें भूल्यों अपन खाऊत किन छट मॉहि :: देसी वस्तु न कर क्ढे में देखें वर चाहिं । . .... नाम- २४१ } श्रीविष्णुविचित्र ।। | रचनाकाल---६६६६ हुदा । क्विरण - इनका नाम वनङ्गनाम्मादही में है । ध्रुवदास इन्हें ... | मुझवि कहते हैं । नाम- २४२) हरचंद । अर्थ–सुश्र । . . रचनाकञ्च-१६६६ । नाम--- ३२) हेमविजय । । विवरण ---हरै विद सूरि ॐ ऋय तथा संस्कृत के मऊ . उदाइ--- घन और घटा उन्नई जुः अई इन उल मर्छ? बिछी ;