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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विनोद यियुरे पियुरे पपिहा लिलाति जु मोर किंार कति मिर्जी । f&च हिंदु परे दृग आँसु झरे हुजि धार अपार इसी निल्ली : मुनि हैम के साहिब देखन के उग्र सैन लसी सु अकेली चली। कहि रजि मती सुमती सा खयान के एक खिनै ख्री रहू हैं; सखि । सगरी अँगुरी मुहिवाहे करति { ? } बहुत इसे निहुरे । । अदही दही क्लबही जइही यदुराय को आय इलों कहु रे । मुदि हेम के साहिद्ध नेम डी हो अब तो रन ते तुम क्यों बहुरे । । नाम- २४३) प्राचंद्र ।। अथ - रामायणमहानाटक । उपनाम महानाटक भाषा ।। । रचनाकाल-१६६७ [ खोज १९८३] । नाम-{ २४४ ) भूपति ।। थ–कविता श्री हजूर । । । रचनाकाल-१६६७ । । नाम---{ २१४ } मोहन उपनाम सहज सनेही । । अ अ-अष्टावक्र । खो ०रि० १६०३। । रसनकाल–१६६७ ।। विवरण-रिवार के साथ यह ग्रंथ बनाया । नाम-{ २४५) रघुनाथ, ब्राह्मणं । । अंथरघुनाथविलास । । रचनाकाल--१६६७ । विवरण---बादशाह अहाँगीर के समय में थे । दाम- २४६ } पद्म भरा । ग्रंथ-क्मिणी जी को ब्याह खो | खोज ११०० ] । इकलं--६३६