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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विनोद उदाहरण--, पावै जो परस ताक होत है सरस भाई, | पावन दरस आकी जानो अनुहार है । रमनीय देखने की क्षीद्धार घेखन की,.. | लखित सुरेखन की प्रगटी पसार है। बक्रिम बूढ़ी करि चिंता चित गूही करि, रचनाऊ इही बिधि बिबिध ब्रिचार है।

कैथन ऋथे लोक चौदह मथेरी,

पर तेरी या हथेरी की न पाई अनुहार है। आन पड़ता है कि इन्होंने कोई बल-शिख बनाया है, जिसका यह छेद है। . ...।

( २५२ ) श्रीसुंदरदासजी दादूपंथी

| नागरी-प्रचारिणी सभा की खोज मैं पाँच सुंदरदास लिखें हैं और सरोज मैं तीन सुंदरदास हैं। खोज में पाँच से दुरदासँ मैं है, तीन का पता दिया है और द का नाम थ हो लिखा है। पाँच मनुष्यों में एक की ऋविदाकाल संवत् १८१७ से १८६६ तक है और शेष का १६५७ से १७१० तक । अतः इन चार नामों का समय भी ऐसा मिलता है कि इनके विषय में कुछ निश्चय होना कठिन है। हमारे विचार मैं इन चार में से केवत्व दो कवि थे और शेष दो नाम दौहराकर आए हैं । एक त से दरदास शाहजहाँ के यहाँ थे, सिन्होंने सुदर बाहर और सिंहासनबत्तीसी-नामक अश्र. १६८८ के लगभग बनाए और द्वितीय सुंदरदास प्रसिद्ध कवि दादूपंथी इसर अर्निया चै, जो जयपूर के निकट दौसा में उत्पन्न हुए थे और निका कविताका १६७७ लै १७४६ तक समझ पड़ता है। इन्होंने निम्नलिखित ग्रंथ इनाए हैं। हुरिबोळ चितावणी, साखर, सुंदरदास की सवै ( १६७५},