पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/४१

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लेव द्धिले गए, उनमें कुछ विशेष विस्तार था, परंतु पीछे से सम्में छन के अदद करने एवं अन्य कारणों से शीघ्दी करनी पड़ी । इससे पीछे के लिखे हुए लेख पहलेवालों की अपेक्षा कुछ छोटे हो गए, फिर भी कवियों की योग्यतानुसार लेखों में उनके गुण-दोष दिखजाने की यथासाध्य प्रयत्न किया गया हैं । इर्तमान समय के लेख की रचना पर समालोचना लिखने का कुछ भी प्रयत्न नहीं किया गया। उनके मंथों के नाम और मोंटी रीति से दो-एक अति प्रकट गुण-दोष लिखने पर ही हमने संतोष किया है। कारण यह है कि इतिहास के छिर्थे वर्तमान समय म विस्तृत वर्णन परमावश्यक नहीं है, और आजकल के बेदकों पर कुछ दिखने की इच्छा रखनेवाली बड़ी सुगमतापूर्वक उनका पूरा ब्योरा जान सकता है। फिर वर्तमान लेखकों के प्रतिकुल उचित अथचा अनुचित प्रकार से कुछ भी खिले जानें से झगड़े-बखेड़े का पूरा मच रहता है । नवरत्नवाले क्यों पर मंथ अलग छप चुका है, सो इसमें भी उनके विस्तृत वर्णन की लिखना अनावश्यक था और उनके नाम भी छोड़ देना मंथ ॐ अपूर्ण इख्ता, इन कारणों से हमने उन कवियों के छोटे-छोटे वर्णन इसमें लिख दिए हैं। जिन महाशयों को उनका कुछ विस्तृत हुल देखना हों, वें नवरत्न” के अवलोकन की ऋष्ट उठावें । | लेखन-शैली । इस मंथ को हम तीन भाइयों ने मिलकर बनाया है, सो लेखको के लिये सुदैव इम, हम खौग, आदि शब्द इसमें मिलेंगे । बहुत स्थानों पर लैखों द्वारा ग्रंथदि देखे ज्ञाने या अन्य कार्य किए जाने के कथन हैं। इन स्थानों पर हम शब्द से सब लोगों के द्वारा उसके किए जाने का प्रयोजन निकलता है, परंतु हम तीनों में से किसी ने भर में कुछ किया है, उसका भी वर्णन हमने हम शब्द से किया है। एक-एक दो-दौ मनुष्यों के कार्यों को अलग लिखने