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मिश्रबंधु-विनोंद

३२४ मिश्रबंधु-विनोद खोया ( प्र० ० दि} में ‘गुणसागर' नामक इनका एक ग्रंथ और मिला है ।। { २५ ४ ) घासीराम मल्लावाँ जिला हरदोई के ब्राह्मण इन्होंने ( द्वि० चै० रि० ) पक्षीविस्वास-नामक अन्योक्कि का एक अड़ा उत्तम अपूर्व प्रेथ बनाया है। इनका ससय संवत् १६८० के लगभग है, क्योंकि इनके छंद हृङ्गारा में भी उधृत हैं। इनका मच्छ बहुत ही लक्षित र चित्ताकर्षक हैं। इनकी गहना झवि पद्माकर की श्रेणी में है। इन्होंने प्रेम, नीति र विविध विषय के वर्णन सफलतापूर्वक किए हैं। कुछ लोयों का ख़याल है कि अकबर के समयदाले घासीराम मल्लवाँबाले घासीराम से भिन्न । कहाँ पाई माई का भीती में सचाई नाई, । दुरत दुराई गति पाँव गयंद की ; ... इडेन बढ़ाई लघुताई छोटे नरन, की, | जानी जाति ऐसे ज्यौं परिच्छा सूक चंद की।

  • अन्य मैं अहीर को है हीर को है पर है,

हर को न पीर को मिठाई विष छंद की ; • | घासीराम कुंड जब ¥बरी लगाई तब,

  • आई री उधर सुधराई नँदनंद की ।

स्थाम लिखे गुनि प्यारी झों आखर, ओग चिठी इह ज सुनि दैहै । देखते ही उड़ जायेंगे प्रान, कापूर त फेरि न हाथन ऐहै । ऊधौं पाहु सुनी खबरें, बृषभानुजली तन क्यों विष बैंहै । कौल कली सम राधे हमारा, सु वा कुबजा की खवासिनि हैहै । । इन्होंने खड़ी बोली में भी कई केंद्र बनाए हैं- “हे बाज़ हाज़िम क्या लाज़िम चिड़ियों पर बार बार करते। इत्यादि । . '