पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/४३

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सूमिका परंतु उनका रचना-काल १७४६ तक चल गया हैं। ऐसे स्थानों पर इतिहास-भंथ में प्रक्रट में कुछ भ्रम अवश्य देख पड़ेगा, परंतु किसी कवि का वर्णन तो एक ही स्थान पर हो सकता हैं और वह स्थान उसके इचदारंभ झा ही होना चाहिए, नहीं तो उससे पीछे के संदराय उससे पहले के समझ पड़ेंगे । धार । हमने इस झंध में दहत-से कवि तथा ग्रंथों के नाम लिखे हैं। बड़े लेख में तो प्रायः संवतः और मैथ के ब्योरे वहीं त्रि दिए राह हैं कि क्रिस्ट प्रकार वह उपलब्ध हुए परं तु छदै बेखों में बहुधा ऐसा नहीं लिजा गया है। कहीं-हों ठीक संक्तु न लिखकर हुमने देवल यह लिख दिया है कि कवि अमुझे संदत् के पूर्व हुआ। संचल दवं ग्रंथों के नाम हमें निम्न प्रकार से ज्ञात हुए हैं--- ( १ ) स्वयं उन्हीं कविया झी रचनाओं से। (३) अन्य दिय की रचनाओं से ।। १३) काशी-नागरीप्रचारिणी सभा की खोज से । ( ४ } शिवसिंह से। ( ५ ) डॉक्टर ग्रियर्सन-कृत माडर्न वनैकुलर लिटरेचर श्रॉफ़् हिंदु स्तान एवं हिंग्विस्टक सर्च ऑकू इंडिया से । ( ६ ) अपनी जाँच एवं किंवदंतियों से । { ७ } धपुर-निवासी मुंशी देवीप्रसाद के लेख में ! विवरण ( १ } हिंदी-इतिहास के संबंध में यह बड़े हर्ष की बात है कि कवियों में रचना-काल ६ देने की रीति प्राचीन समय से चली 'श्राती है । इससे सैकड़ों कविय के विक्य में सुगमता से अमहीन इत् प्राप्त हो गए । कबिगस अपने ग्रथों में स्वरचित अन्य ग्रंथै के भी हवाले कहीं-कहीं देते हैं । इन हवा में उनके अन्य