पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/४७

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भूमिका रहे हैं, सो झवि एवं लेख्छ कृपया अपना झा औरों के हल्द्ध हमें भेजने का अनुग्रह करें । इनके उत्तर में प्रायः ३०० महाशा ने अपनी या अँ की जीवनी हमारे पास भेजने की कृपा की । इसके अतिरिक्र जो कुछ हमें ज्ञात था उसके सहारे से हमने इस ग्रंथ में लेख के दर्शन लिखे हैं। जिन वर्तमान लेखक के निश्चित परिचय नहीं मिल सके, उनकी अबस्था आदि के विषय में कहींकहीं अनुमान से भी वर्णन लिख दिए गए हैं, परंतु ये अनुमान ऐ ही के दिपय में किए गए हैं कि जिनसें हम मिल चुके हैं। इस ग्रंथ में बहुत-से ऐसे कवियों का वर्णन हैं, जिनके काल-निरूपण में भूल होना संभव है। इस संबंध में यही निवेदन करना है कि यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि दुक्क मनुष्य सब कुछ नहीं जान सकती । बहुत-सी ऐसी भी बात हैं जो पता लगाने से भी इमें न ज्ञात हुई, परंतु औरों को दें सहज ही में मालूम हैं । यदि वें उन बातों को हमें सूचित करेंगे, द आगे के संस्करण से बे भूलें निकुड़ सकी । सहायक इसी स्थान पर हम उन सज्जनों का भी कथन कर देना चाहते हैं। जिन्होंने कृपा करके इस ग्रंथ की रचना में हमको सहायता दी । सबसे अधिक धन्यवादास्पद वायू श्याम दरदास हैं। यह उन्हीं के प्रयत्नों का फल है कि काशी-नदारीत्रचारिणी सभा ने सरकार से हिंदीमंथों की खोज के लिझै धन-सहायतः पाई और १६ वर्षों से सभ” यह काम सफलतापूर्वक्र कर रही है ! यदि खोज ने ऐसा प्रशंसनीय काम न कर रक्खा होता, तो ऐसा पूर्ण साहित्य-ग्रंङ कदापि न बन सकता । शिवसिंहसरोज से भी हम अच्छा सहायता मिली है। मंशो देवीप्रसादी मारवाड़-निवासी में हमें प्रायः ८०० कवियों की एक नामावली भेजी, जिसमें हमको २०५ नए नाम मिले । मुंशीजी