पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/४९

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भूमिका १३ प्रकार ज्यों-ज्यों उन्नति होती गई, त्यों हिंदी की भी परिवर्तन होता गया । ग्रंथ में काल-विभाग इस प्रकार किया गया हैनाम | किस्तो कुर्वेद सहती है । कम संवन में किसक) पूर्वारंभिक काल ७६० १३४३ बहुत कम उत्तरारंभिक झालं १३४४ १६११ र्थोड़ी पूर्वसाध्यमिक काल कुछ अधिक प्रौढ़ माध्यमिक काळ १५६१ १६८ अच्छी मात्रा में पूर्वाहंकृत काळे १६८१ १६६०. बहुत अच्छी मात्रा में उत्तरालंकृत काल ३७६ १ १८८९ वर्धमान मात्रा में अज्ञात अछि साधारण परिवर्तनकाल १८० १९२५ : प्रचुरता से वर्तमान काल १६२६ अब तक बहुत अधिक | अज्ञात काल के कविवरण प्रायः उत्तरालंकृत वं परिवर्तन काल के समझ पड़ते हैं। मंथ में इस काल-विभाग के उठाने के पूर्व रात अध्यायों में हिंदी का संक्षिप्त इतिहास लिखा गया है। इस भाग का नाम संक्षिप्त प्रकरण हैं। इसके पीछे पृवरंभिक उत्तरारंभिक और पूर्व माध्यमिक काले को मिलाको अादिप्रकरण बनाया गया है । इसनें इन्हीं तीनों काल के नाम पर तीन अध्याय हैं। तन काज , एक ही में रखने पर भी छवियों की कमी से यह प्रकरण छोटा है। इसके पीछे छों कालों में प्रत्येक के नाम पर एक-एक प्रकरण है। प्रौढ़ माध्यमिक प्रकरण में सात अध्याय हैं, जिनमें सृर और तुलसीकाद्ध का वर्णन हुआ है। पूर्दालंकृत प्रकरण में सात अध्यायों द्वारा भूषण और दैव-काल का कथन है और उत्तरालंकृत प्रकरण में छः अश्या मैं दास-पाकर-कान चाएत हैं । इन दोनों प्रकरों के