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मिश्रबंधु-विनोंद

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সিবিনীঃ हुई। परिवर्तन-काल में क्या और रीति-विषय कुछ कम पड़ गए और गद्य का बल बढ़ा। अवधी भाया लुप्तप्राय हो गई और खड़ी बोली ब्रजभाषा की कुछ अंशों में समताली करने लगी, यद्यपि प्राधान्य ब्रजभाषा का ही रहा । ऋग्वारस इस काल से ही कुछ घट चला था और वर्तमान काल में वह बहुत न्यून हो गया है। यद्यपि अब भी उसका कुछ बल्ल है। अब कथा और स्फुट विषयों का विशेष जोर है और गद्य ने बहुत अच्छी उन्नति करके पद्य को दबा दिया है । परिवर्तन-काल में दीर-रस का प्रायः अभाव हो गया था और अक्ष भी वह शिथिल है । शांति और नाटक बलवान् हैं और रीति-ग्रंथ का शैथिल्य है जो उचित भो है। अब खड़ी बोली प्रधान भाषा है, और ब्रजभाषा का केवल पद्य में व्यवहार होता है; सों भी सब कृवियों द्वारा नहीं । संवत् इस ग्रंथ में ईसवी सन् न लिखकर ऋभने विक्रमीय संवत् लिखा है। इस विषय पर बहुत विचार करके हमने संवत् ही का लिखना उचित समझा । हमारे यहाँ प्राचीन काल से अब तक संवत् का ही प्रयोग होता चला आया है, सो कोई कारण नहीं है कि हम अपने साहित्य-इतिहास में भी बाहरी सन् का ब्यवहार करें। यह ग्रंथ हिंदी जाननेवाल के लाभार्थं लिखा गया है। उनमें से अधिकांश अँगरेज़ी अन् ग्वं महीनों का हाल ही नहीं जानतें, अतः सर्ने के प्रयोग से डों स्नाभ न होता । ॐ अँगरेज़ीदाँ हिंदी-सक हैं, मैं संवत् से १० घटाकर सुगमता से सन् आन सकते हैं। कहा जा सकता है कि सनों में ही इतिहास जानने के कारण अकबर, औरंगजेब, एलीज़ग्रंथ आदि राजा-रानियों के समय पर ध्यान रखकर तत्सामयिक हिंदी-इतिहास की घटनाओं पर विचार करने में अड़चन पढेगः । यह बात अवश्य यर्थः हैं, परं तु थोड़ा-सा कष्ट उठाकर विद्वान् लोग