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মূলিঙ্ক से कुछ हानि हो सकता है । यह बात कुछ-कुछ यथार्थ है, परंतु इसके लिये उनका वर्णन ही छोड़ देना आवश्यक नहीं । इमने वर्तमन्द लेख्वक के ग्रंथों में वर्णन कर दिया है और उनके सहारे वर्तमान साहित्यकाति का कथन भी किया है, परंतु प्रत्येक लेखक के गु-दोषों पर विशेष ध्यान नहीं दिया है। गुरु-दोषों के वर्णन में हमने वर्तमान झाल्छ की लेखन-शैडी पर अपने रिचार प्रकट कर दिए हैं। इसी कार से हमने वर्तमान लेखकों में श्रे-विभाग नहीं किया । श्रेमियों का वर्णन आगे आगा । दृस आपस में हमें कुछ भी बल नहीं समझ पड़ता है । हम ग्रंथ इस समय लिख रहे हैं, सो हमारे कथनों में इस समय तक उन्नति का हो रहे । इस समय जो छैखक जैसा है, उसक? वर्णन भी वैसा ही हो सकता है। अविष्य में जब वह जैसी उन्नति करेगा, तब भविष्य के इतिहासकार उसका वैसा ही कथन करेंगे । हमारे यहाँ इस मामले में अगरेज़ी इतिहासकारों के प्रणाली नहीं मानी जा सकती । बिलासत में समालोचना-संबंधी पत्रों का बड़ा बल एवं गुण-ग्राहकता की अड़ी धूम है । वहाँ प्रत्येक ग्रंथ की अनेकानेक समालोचनाएँ उसके छपढ़ें ही प्रकाशित होने लगती हैं और उन समालोचनाओं की भी अनैक अलौचनाएँ निकल जाती हैं। इसलिये वह साधारण पाठ तक की देश का वास्तविक स्वरूप बहुत जल्द ज्ञात हो जाता है। अच्छे प्रथकारों के अनेक जीवन-चरित्र भी पत्र-पत्रिकाओं में निकल आते हैं। वहाँ सद्गुणों की इतनी अधिॐ पूसा होती चली आई है कि किसी मुखी मनुष्य के जीवन-चरित्र एवं यश की लुप्त हों आना बहुत करके असंभव है। ईंगलैंड का कवि चासर संवत् १३६७ में उत्पन्न हुश्री था और ६० वर्ष की अवस्था में उसका शरीरांत हुआ । ऐसे प्राचीन आदि के विषय में भी पूरा हाल ज्ञात हैं, यहाँ तक कि उसके बाप-दादों तक का निरिक्त न लिखा है। इधर हमारे यहाँ सृरदस, केशवदास,