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मिश्रबंधु-विनोंद

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२० मिश्रबंधु- दिद बिहारीलाल, सैनापति, लाल अभृति महाबियों के जन्म-मरण अादि के विषय में भी केवल अनुमान का सहारा लेना पड़ता है। हमारे यहाँ लोगों ने कृवियों के अंथे स्थिर रखने और उनसे आनंद उठाने का कुछ प्रयत्न क्रिया भी, परंतु उनके हालात जानने में प्रेस नहीं दिखायः । यहाँ जीवन-चरित्र लिखने की परिपाटी स्थिर नहीं हुई और यह निश्चय नहीं होता है कि यदि किसी लेखक का नाम छोड़ दिया आय, तो वह अन्य प्रकार से स्थिर रहेगा । शायद इन्हीं कारणों से सजकार ने भी अपने समय में वर्तमान कवियों की हाल लिखना उचित समझा था } यदि वह अपने समयवाले कवियों के नाम न लिखते, हों अज हम उनमें से आधे महाशयों के नाम कदाचित् ज्ञात न हो सकते । फिर पिछले २५ वर्षों के भीतर हिंदी में प्रायः सभी विषयों में बड़ी संतोषजनक उन्नति की है। आजकल के गद्य-लेखक ने हिंदी में सैकड़ों परमपी प्रेथ लिखकर उसके प्रायः सभी विभागों को पुष्ट किया है । इन लैखर्को में अधिकांश अभी जीवित हैं, सो इस उद्गति के कथन को छोड़ रखना इतिहास-ग्रंथ एवं हिंदी-उन्नति के वर्णन को अपूर्ण छोड़ देना है। इन कारणों से हमने वर्तमान लेखों का विवरण साहित्य-अंथ के लिये आवश्यक समझा । वैद क्षेवल इतना ही है कि इस वर्णन का हमले अर्थोचित विस्तार नहीं किया, क्योंकि ऐसा करने से ग्रंथ में अन्य समय के अकिरि-प्रकार के देखते हुए वर्तमान समय का आकार अपेक्षाकृत बहुत बढ़ जाती । हमारा विचार है कि हरिश्चंद्र के पीछे हिंदी” या किसी ऐसे ही अन्य नाम की एक बड़ी पुस्तक बननी शादिंए, जिससै अँगरेज़ी ढंग एवं समालोचना शैली के अनुसार वर्तमान् लेखक की रचनाओं का सांगोपांग कथन हो ।