पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

भूमिका | ग्रंथ का आकार तथा लेखकों की अयोग्यतः हमारे इस ग्रंथ का आकार देखने में कुछ बड़ा समझ पढ़ता हैं, परंतु वास्तव में यह उचित से बहुत छोटा है। इसमें प्रत्येक छवि को विवरण थड़ी हैं और समालोचनाएँ भी छौटी और पूर्ण संतोष प्रद नहीं हैं। जब प्रत्येक कवि के ग्रंथों का पूरा अध्ययन करके उन पर गंभीर मनन किया जाय और तब अच्छे विद्वान् उन पर समालोंचनाएँ लिखें, तभी वह सांगोपाँरा दुरुस्त बनें, नहीं तो साधारण गुण-दोष ही का कथन उनसे मिलेगा । परं तु यह काम बहुत बड़ा है र दो-चार मनुष्यों द्वारा समाप्त नहीं किया जा सकता । यदि दर्तमान लेखकों में से कतिपय विद्वान् दस-दस पाँच-पाँच कवियों को लेकर उनके ग्रंथों का पूरा अध्ययन करके उन पर समालोचनाएँ प्रक• शित करें, तो अच्छे समाचदा-संबंधी लेख भी निकल सकते हैं। और उनके आधार पर बढ़िया इतिहास-मंथ भी बन सकते हैं। यदि उच्चत भाषा के साहित्य-इतिहासदाले ग्रंथ देखे जायें, तो प्रकट होगा कि उनके लेखक साधारण छवियों के विषय में भी दो-चार विशेषण ऐसे चस्त कर देते हैं, जो उन्हीं रचयिता के विश्य में लिखे जा सकते हैं, औरों के लिये नहीं । हमारे यहाँ अभी कुछ दिन तक ऐसे उछल इतिहास-ग्रंथों को बनना कठिन है । एक तो वहाँ के उत्कृष्ट गद्य-लेखकों की बराबर। हम लोग नहीं कर सकते और दूसरे उनको मसाला बहुत अच्छा मिलता है । कहाँ समालोचन-संबंधी , हज़ारों बर्दिया लेख वर्तमान हैं अँर प्रत्येक कवि के गुण-दोषों का पूरा विवरण असं कवि-कृत ग्रंथ कम एक पृष्ठ पढ़े बिना भी ज्ञात हो सकता हैं। ऐसी दशा में अच्छा साहित्य-इतिहास-लेखक थोड़े परिश्रम से भइ उत्कृष्ट ग्रंथ लिख सङ्कता है। हमारे यहाँ यह दोष है कि कपड़ा बनाने के लिये उसी व्यक्लि के खेत जोतनै, बाने, सींचने रखवाली करने, काटने, रुई निकालने, ऑटने, मत, अच्छा सूत बनाने और