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मिश्रबंधु-विनोंद

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५३ मिश्रबंधु-विनोद कपड़ा बीनने के काम करने पड़ते हैं। ऐसी दशा में यहाँ परम चतुर मनुष्य का भी काम उन्नत देश के कार्यों की अपेक्षा हलका हुँचना स्वाभाविक है। फिर हिंदी के दुर्भाग्य से इस प्रेथ के लिखने का काम हम लोगों के मत्थे पड़ा है, जो भाषा-संबंधी मर्मों से बिलकुल अनभिज्ञ हैं। इस कारण यह ग्रंथ बिलकुल शिथिल बना है। हमें इसके लिखने का साहस न था, परंतु बड़ों की आज्ञा शिरोधार्य कर इसने इसमें हाथ लगाया। इसको सामग्री एकत्र करने में हमें एक और भारी कठिनाई पड़ी, वह यह कि बड़े-बड़े कवियों के भी ग्रंथ अमुद्रित होने के कारण उनका प्राप्त करना दुस्तर हो गया और सैकड़ों ग्रंथ न मिल सके। बहुत-से ग्रंथ मिले भी, तो ऐसी जल्दी में कि उनका भली भाँति अध्ययन करना कठिन हो गया । थौड़े समय में हज़ारों ग्रंथ पढ़ने के कारण हर समय चित्त पूरे ताज़ेपन के साथ उनमें प्रविष्ट नहीं हो सका । हमनें यथासाध्य सभी प्राप्त ग्रंथ या उनके मुख्य भागों को पढ़कर ही कवियों के विषय में लेख विखे हैं। और लेखों के यथार्थ गुण-दोष दिखाने का पूरा प्रयत्न किया है। यदि विनोद की समालोचनाओं से हिंदी-पठित समाज में कुछ भी समालोचना-प्रेम आत हुश्रा, तों हम अपने को धन्य समझेगें । किसी विषय पर प्रथम प्रयत्न में बड़े-बड़े पंडितों की भी रचनाओं में त्रुटियों का रह जाना स्वाभाविक है, फिर जब बिलकुल साधारण लेखक साहित्य-इतिहास-जैसे गंभीर विषय पर ग्रंथ-रचना का साहस अरे, तद उसमें कितने दोष आ जायेंगे, इसका विद्वज्जन स्वयं दिर कर सकते हैं। इस कारण हम विनोद की भूलों की बाबत अभी मैं क्षमा माँगे लेते हैं। श्रेणी-विभाग हमने इस ग्रंथ में एक अपूर्व मत्त पर चलने का साहस किया है ।। • आशा है कि कपिछ हम इस धृष्टता को भी क्षमा करेंगे । हमने