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मिश्रबंधु-विनोंद

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मिश्रबंधु-किनोंद अपेक्षाकृत काव्योत्कर्ष साधारण श्रेरिवाले कवियों की रचनाएँ यद्यपि हमार! अया में साधारण समझ गई हैं, परंतु अन्य भाप के काव्योत्कर्ष की अपेक्षा वह भी सराहनीय हैं। भारत में श्रीस्वामी शंकराचार्य के पीछे प्रायः सभी बातों में अवनति हुई, परंतु साहित्य इस नियम से छुट रहा है। यहाँ परमोन्नत देशों की अपेक्षा बुद्धि-गौरव में न्यूनतः नहीं है और हमारी प्रचंड अवनति के कारणों में विचार-शून्यता एक नहीं है। भारत में गौतम बुद्ध के समय से दया या आविर्भाव बहुत अधिक रहा है। धन्नति भी यहाँ अन्य देशों की अपेक्षा खूब हुई । इन दोनों ने मिलकर हमारे यहाँ विज्ञान-वृद्धि में जीव-दया एवं संसार की असारतावाले विचारों का बहुत बड़ा प्राबल्य कर दिया । यहाँ दया-वाहुल्य से पर-दुःख-हानीच्छा ऐसी बलवती हो गई कि करुणाकर को यह सोचने का समय न रहा कि अनुकंपापत्र के दुःख का जन्म उसी के दोषों से हुआ है या अन्य कारणों से । इसका फल अह हुआ कि लाखों हृष्ट-पुष्ट मनुष्य यहाँ काम करना नहीं चाहते और पीढ़ियों तक दूसरों की दया पर ही छते रहते हैं। इसी प्रकार पडे, पुरोहित, गुरुसंतान, बहुत-से ब्राह्मण, इत्यादि-इत्यादि लाखे मनुष्य विना कोई उपकारी काम किए ही साधारण काम-क्राजियों से श्रेष्ठतर देशों में रहते हैं । जीवन-होड़ का हमारे यहाँ पूर्व काल में प्राबल्य नहीं हुआ, परंतु सांसारिक उन्नति के लिये जीवन-होड़ संबंधी प्रबलता परमावश्यक हैं । विना इसके कोई व्यङ्ग परिश्रम झरना न चाहेगा और परिश्रमी, जनों को न्यूनता से, देश की सभी प्रकार से अवनति होगी । हमारे यहाँ धर्म, कर्म, रस्स-रवाऊ अदि की परिपाटी, दा एवं संसार की अनित्यता के भावों से ऐसा कुछ बिगड़ गई। है कि जिस रीति को देखिए, उसी से अकर्मण्यतर की वृद्धि होती