पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/६१

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।। दुर्भाग्यवश इमारे यहाँ ईया का अळ भर रहा हैं । इस्नै वं जीवन-होड़-निर्बलता ने ऐक्य ॐ बड़ी ही मेंदू दशा में । श्या । इन कार्यों से समाज-बल कई अन्य बातों में चूर्ण हों या श्रीर देश की अधिकाधिक अवनति होती गई, परंतु यह प्रवनति उत्तम भावों के उचित से अधिक प्रभाव बढ़ जाने से दुई थी, सो अवनति के साथ देश में नीचता नहीं आई और बुद्धि ३ ह्रास विद्वान् मनुष्यों में नहीं हुआ, केवल जिन बातों में अनुचेत सिद्धरेत मान लिए गए थे, उन्हीं में देशीय बुद्धिवैभव दुबई हा । इन कारणों से हमारे यहाँ उपकार विषयों की वृद्धि तों राहित्य में नहीं हुई, परंतु जिन-जिन यिय पर रचना की गई, इनमें कन्यौलकर्ष कमाल को पहुँचा दिया गया । सुतरां अनुपयोग धेपर्यों पर भी काय करनेवाले साधारण महानुभाव तक की 'चनाओं में वह काब्यकर्प देख पड़ता है, ॐ चित्त प्रसन्न कर देता है। इसलिये यहाँ के साधारण विजन भी अन्य भाषाओं के उत्कृष्ट वियों तक का सामना कर सकते हैं। यह लोकपथरी विधयों की और खौगों का ध्यान कम रहा और कार्य-प्रचुरता के भार से भी है में नहीं रहे हैं। इस कारण साहित्य की ओंर सँग का विशेष ध्यान हा है, सो गणना एवं साहित्य-ग्रीदता में हमारे विजन अन्य षावाले अपने भ्राता से बद्भुत बढ़े-चढ़े हैं | हिंदी में इतने [हाराजाओं, राजाओं, महर्षियों, मुहंतों एवं अन्य महापुरुषों ने चदाई की हैं कि अन्य भाषाओं में उसका लैश-मात्र नहीं देख हृता । विनोद में लिखे हुए ऑर्थों की नामावली एवं उनके प्रकार र विचार करने से प्रकट होगा कि हिंदों में ब्य-अथ अन्य भाषाओं 5 साहित्य-ग्रंथों से बहुत अधिक हैं । ॐ यदि किस समय हिदी | ॐ हर्ष की बात है कि हिंदी अब कई विश्वविद्यालयें में पढ़ाई इने जुर्ग हैं।