पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/६५

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भूमिका २६ की, कैल्ल दे-चार ऐसे महायों में इस कारण से किसी श्रेणी में नहीं रक्खा, जैसा कि ऊपर कहा जा चुम है। श्रेश-विभाड़ में एक अपत्ति यह अवश्य है कि इसमें मत-भेद का होना स्वाभाविक है । हमने स्वयं कई बार अनेक कवियों की एक श्रेस से दूसरी श्रेणी में हटाया हैं। इससे यदि कई महाशय किसी ऐसे कवि , जिसे हमने किसी हीड में रक्खी हों, किसी दूसरी श्रेस्त्र में रखना चाहें, तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है। हमने बहुत-से कवियों की रचनाओं के उदाहरण दे दिह हैं, स ढग उनके विषय में स्वयं भी विचार कर सकते हैं। हमने श्रे-विभाग का ब्यन प्रायः इन सब कवियों के विषय में कर दिया है, जिनकी कविता हमने देखी है। इन सभी स्थान पर हमारे लेखों से छवि की किस ख़ास श्रेणी में स्थिति के कारड़े नहीं मिलेंगे । ऐसे स्थानों पर चे स्थितियाँ हमारी सम्मतिमात्र प्रकट रती हैं । यदि कोई महाशय उनै कवियों के अंथ पढ़कर हमारे मत के अन्नाद्र माने, तो हमें उनसे कुछ नहीं कहा है। यह श्रेणी-विभाग उन्हीं दो की लाभदायक हो सकता है, जिन्होंने इन कवियों के अंथ न देखे हों और ॐ हमारी कारण-धन-हीन सम्मति-मात्र को प्रा मार्ने । विद्वज्जनों को अंथावलोकन से इन सम्मतियों के कारण स्वयं ज्ञात हो जायँगे, क्योंकि यथासाध्य १ विचार के बाद ही सन्मति दी गई हैं। प्रत्येक स्थान पर कारख लिखने से ग्रंथ का विस्तार बहुत अधिक बढ़ जाती । विनोद में बहुत-ॐ कवियों पर समालोचना लिखी गई हैं और बहुतेरों को चक्र में स्थान मिला है। इससे यह प्रयोजन नहीं है कि चक्रवाढे देगण समालोच्य लेखकों से न्यून हैं। उनके चक्र में स्थान पाने का मुख्यतयः यही कारण है कि इम उनके अंथ भली भाँति या कुछ भी देख या प्राप्त न कर सके ? आजकल के उचित लेखकों में हमने बहुत का कयन चक्र में संक्त के नीचे लिया है और कुछ को वर्तमान कालवाले शीर्षक