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मिश्रबंधु-विनोंद

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मिश्नबंधु विनोद हैं। ऐसा उन्हीं के विषय में किया गया है, जिनके रचनारंभ-काल पर कोई अनुमान नहीं किया जा सका । वर्तमान समयवाले बहुतसे खेसों की केवल नामावली प्रेथ में दी गई है। इनके विषय में साधारण जाँच से कुछ जान नहीं पड़ा और इसमें विशेष परिश्रम इस कारण से नहीं किया गया कि वर्तमान समय यों ही कुछ बढ़ चुका था। अब कभी आधुनिक समय पर हमें या किसी और को ग्रंथ-रचना का सौभाग्य प्राप्त होगा, तब इस विषय पर विशेष ध्यान दिया आ सकेगा ! काव्योत्कर्ष काब्यकर्ष क्या है। इस ग्रंथ में स्थानाभाव एवं अन्य कारणों से कवियों के वर्णन पूरे नहीं हो सके हैं। हमने स्थान-स्थान पर काव्योत्कर्ष एवं साहित्य-गरिमां आदि का कथन झिया है। यदि कोई पूछे कि किन दुर्गों के होने से हम कश्यू को गैरवान्वित मानते हैं, तो हमको विवश कहना पड़ेगा कि इन गुणों एवं कारणों का कथन हरएक छंद के लियें पृथक् है। इसका कोई ड्रोदा-सा नियम नहीं बताया जा सकता । आचार्यों ने दशांग-कविता परे अनेकानेक ग्रंथ रचे हैं। उनमें गुण-दोषों का सांगोपांग वर्णन है। ऐसे ग्रंथ हिंदी-साहित्य में भरे पड़े हैं, जैसा कि अन्यत्र कहा गया है । इन गुणों के अतिरिक्त शील, गुण-कथन इदं भारी वर्णनों के सक्सिलित अभायों पर भी ध्यान देना पड़ता है। शब्द-प्रयोग का भी सम्मिलित अभाव छंद-लालित्य-प्रवर्द्धक होता है । इन सब बातों पर समालोचक की रुचि अधीन है । कोई किसी शुरू में श्रेष्ठ मानता है और कोई किसी कों। हम स्फुट छंदों के गुणदौष एक्नेवाड़ी अपनी प्रणाली के कुछ उदाहरण यहाँ देते हैं . .. देव-कृत छंद . . . . सखी के स्कच गुरु सोच मृगलचनिरि|. . सानी पिय सों जु उन नेकु हैसि कुयों, आत् ।