पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/७१

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भूमिका आर्त है । यह नहीं प्रकट होता कि नायक ने कोई लज्मा का अंग छु, परंतु फिर भी दायिक क्रुद्ध हुई । सुतरां अपूर्ण कारण से पूर्ण कार्य हो गया, जिससे दूसरः विमाबा-अलंकार हुअर ! नायक उत्तम है, क्योकि वह नायिकी के क्रोध से मुकरता है। रहा है। नायिका मध्यमा है। नायिका पहले मिस फिर रौई । फिर उसने हाय-हाय किया और अंत में उसके आँसू बहने लगें । इसमें उन्- रोत्तर वृद्धि से सराहे झार आया । या ॐ ॐध से माय* में सुंदर नाच हुअः, सः अरिख । ऊज की उत्पन्न होने के कारण अनर्थ विभावना-अलंकार निकला । नायक ॐ इँसर त छुने से नायिका हँसने के स्थान पर क्रोधित हुई, अर्थात् कारण है विरुद्ध कार्य उत्पन्न हुआ, सौ पंचम विभावना-अर्लंकार अश्या ।" “अहंकार य% और में हैं. अनेक दरपुर अभिप्राय ऋदि के अहाँ सो प्रधान तिन महि । इस विचार से छंद में उस का सस्त्री के मुख से मृगौचने एवं बट्टे-बड़े नैन कहे गए, जिससे सखी-मुख-गर्व ट हैं । दचक प्राधान्य से यहाँ प्राचीन मद से उत्तम काव्य है । कुल मिलाकर छंद बहुत अच्छा है । इसमें देष बहुत कम और सगुण अनेक हैं। तुलसँदास-कृत छंद । ॐ पुर ग्राम बसहि मग माहीं ; निहिं नाग सुर-नर सिहाहू ।। केहि सुकृती केहि घरो जाए ? धन्य पुन्यमय परम सौहाथ । जहँ-जहँ रामचरन चह्नि हीं ; तहँ-समान अमरावते नाहीं । परसि. राम-पद-पदुम-परा ! मानतिः भूरि भूमि निज सारा । ॐ ह्रीं चौपाई-छंद हैं। तुजसीदास की चौपाइयों में दुस-पंद्रह छेड़ निकलते हैं, परंतु उन्होंने इन सब चौपाई कहा हैं। ऊपर लिखे छैद पादाकुलझे हैं ।।