पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/८३

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दिखलाकर कार्य-सुधिन के प्रबंध नहीं कर सकता था । इसलिये उसने इस धूर्त की बाय; हैं । ये दोनों मन्नूनल बदला देने में सूद सन्नड़ थे । करी मुनि अड़ा ही चतुर एवं प्रबंधकृत था । पहले उसने राजा को शुद्धय झार फिर अन्य राज्ञा को पत्र लिस्रकर युद्ध में प्रबंध शि। इसमें अपने को श्राडि सृष्टि में उत्पन्न कहकर बड़ी ही संदेह-पूर्ण दशा में बाहर, परंतु वैसा कहने के पूर्व यह समझ बुझ था कि राजा पुर। मृखं हैं और पूर्णतया इसके वश में हैं। कपट मुनि और कालक्रेतु आहे ते सौतें मैं रा हैं वहीं मान्न देते ; युरंतु में उसका सकुटु' ब नाश झरना चाहते थे: । ॐवद्ध उसे मारना उन्हाने फ्री से समझा कत्रि में इस थ दुबइ शायद यह भी दिया कि ब्राह्मण ने ध्रव थोड़े-से अपराध पर इइ के सुपरिवार नाश करने में अनौचित्य दिगझलाया, जिससे समय पर वह द्वारा उन्हें दुःदु हुन्न । इस कथा में गोस्वामी ने छुद्ध-बाती इराने में अच्छी सक- लता दिखलाई और राज्य की मूर्खता प्रकट करने कुछ ऐसे भी कथन कर दिए, जिनसे बुद्धिमान् मनुष्य को संदेह होना उचित था । यदि युद्ध में झलकेतु तथा ऋपटी मुनि की गल्विामीजी दुई दिखला देते, तो पाठक से अधिक ग्रसन्नतः होतो, परंतु संक्षिप्त वर्णन्द के कारङ कर सके। उपयुक्क उदाहरण से ज्ञात होगा कि हमने कवियों की साहित्य- गरिमा कैले विचारों में स्थिर की है। प्रत्येक लेखक के विषय में ऐसे-ही-ऐसे विस्तृत इथन करने से ग्रंथ का आकार बहुत अधिक बढ़ जाता, बरन् य ऊहना चाहिए कि इतिहास-पंथ में ऐसे कथों को स्थान मिल ही नहीं सकता ! ऐसे ही विचारों से हमने प्रत्येक स्थान पर कारण लिखे विदा कवि ॐ श्रेणीबद्ध किया और इन्- की रचनाओं पर अनुमति प्रकट की है।