पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/९१

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बिरोधी, पात्र-विरोध, रस-बिरुद्द और भाव-विरुद्ध दर्शनों को नरस संग ऋ बार में अद्धिस्य, उग्रता, एवं जुगुप्स का वर्णन नहीं हो सुकता ! कवि ने विशेष रस के संचाशीं भी लिए हैं। र शंका, सूया, भय, गहानि, धृति, सुमृति, नींद, मृति । चिंता, विस्मय, व्याधि, हुई, उत्कंठा, अड़गति । मद, दियद, उन्माद, लाज, अचहित्था जानहु : सुति इधद्धतः मैं वि सिंगारे अनुहु । सामान्य मानें संयोग में सकल भाव वरना करहु । अलस्य, उग्रता मात्र हैं सहित जुरुसा परेर । श्रम, अपर्छ, अर्वाहत्थ अरु निंदा, स्वप्न, गाने * : संक्रा, मूया - हास्य-रस संचारी थे अनि ।। करुण रोग, दोनता, स्मृति, ग्लानि चित्त निर्वेद । चापल, सूर्य, उछाह, रि, रौंद्र राई श्रद । श्रम, सूया, धृति, तर्क, मान, मोह, गर्व अरु क्रोध । रोमहर्ष, उग्रत्व इस बीरबैग अबोध ।। | भवान-बीमत्त्व त्रास मरन ये भयानक अरु बीभत्स विशद । भय, मद, व्याधि बितळे अरु अपस्मार उन्माद ! | अद्भुत-शांत । मोह, इर्ष, बैरः सति, अड़ता, दिस्मथ जानि;