पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/९२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
५६
मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्नबंधु-विनोद रस अ यह सूक्ष्म वर्णन यहीं समाप्त होता है । रस एवं गुणों को मिलाकर कवियों ने कैशिकी, अारभटी, भारती और सात्वती- नामक चार वृत्तियों का कुर्थन किया है ।। पात्र पत्रि-विचार भी रस एवं भावों के विषय से मिलता-जुलता है। पात्र वाचक, झाक्षणिक और व्यंजक होते हैं। इनके आधार मुख्यतया इस प्रकार हैं- वाचक पात्र के आधार---शुद्धस्वभावा स्वकीया, अनुकूल पति, सखी विद्याशीला गुराइनि, नर्म सचिव पीठमर्द, गुरुजन धाय, कुद्ध धर्म का उपदेश । लाक्षणिक पात्र के आधार-गर्वस्वभावा स्वकीया, दक्षिण पति, धृष्टा सखी, विट नर्स सचिव, दूर्ती मालिनि चायनि, उपदेश पिय वश करने के उपाय । ब्यंजक पात्र के अाधार-शुद्ध परकीया, नायक शठ धृष्ट, नर्म सचिव, विट एवं विदूषक, दूती नीच पुर- जन, उपदेश निंद्य कर्म । , | अलंकार अव अलंकारों का वर्णन शेष रहा ! अलंकार शब्द एवं अर्थ- संबंधी होते हैं । शब्दालंकारों में अनुप्रास के अंतर्गत वीप्सा, यमकादि आते हैं। ये गणना में थोड़े हैं। चित्र-काव्य इसी के अंत- गत है, जिसमें शब्द-वैचित्र्य की प्रधानता है । भाव-शिथिलता के कारस्य आचार्यों ने इसे प्रशंसनीय नहीं माना है । अर्थालंकारों में १०१ मुख्य अलंकार हैं जिनके भेदांतर अनेक हैं । दैवी में