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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विनोद हमारे यहाँ का रीति-विभाग बहुत ही पूर्ण है और संस्कृत में छोड़ अन्य भाषाओं में इसकी जोड़ मिलना कठिन है । वर्तमान शैली । इस रीति-वर्णन से साधारण पाठक के भ्रम पड़ सकता है कि क्या हमारे यहाँ साहित्य-रीति में स्वाभाविक वर्णन, प्रकृति-निरी- क्षण, चरित्र-चित्रण अादि पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा सकता है ? ऐसा विचार उठना न चाहिए । उपयुक रीति-धन में कई स्थानों पर ऐसे वर्णन का श्रादर किया गया है। देवजी नै अलंकारों मैं अपमा और स्वभाव को मुख्य माना है। स्वभावोक्कि में इन बातों की ही गुरुता है। इसी प्रकार समता, सुधर्मिता और प्रसन्नता-नामक गुणों में सुप्रबंध का अच्छा चमत्कार रहता है। सुप्रबंध में स्वभाव- वर्णन, प्रकृति-निरीक्षण, चरित्र-चित्रण आदि भली भाँति आते हैं। सुप्रबंध की मुख्य तात्पर्य यही है कि जिस विषय का वर्णन लिया जाय, उससे संबंध रखने वाली सभी बातों को पूरी और सपांग योचित कधन हो । यदि दुलाब को उठाया जाये, तो उसके वृक्ष, पत्ती, काँटे, डालियाँ, फूड, फूद्ध की पत्तियाँ, उनकी सुगंध, रूप, रंग, पुष्प-रस, अर्क, इत्र, भ्रमर, कज्ञों का प्रातःकाल चिटककर फूटना, इत्यादि सभी बातों को कथन हो । यदि कोई मनुष्य नापदान तक के वर्णन में सुप्रबंध को स्थिर रक्खेगा, तो उसकी रचना सराहनीय होंगी । हमारे यहाँ बहुत-से कवियों ने प्राकृतिक वर्णन अवश्य नहीं किए, परंतु इससे यह नहीं कहा जा सकता है कि हमारी साहित्य- रीति में ही इसका अभाव अथवा अनादर है। | भाषा-संबंधी विचार हिंदी-अंर्थों की भाषा कैसी होनी चाहिए, यह विषय भी विचार हीय है । कतिपय संस्कृत के विशेष प्रेमी विद्वानों का मत है कि हिंदी में कम-से-कम गद्य-लेखन-शैली प्रायः पूर्णतया संस्कृत व्याक-