पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/९७

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भूमिः । लिपि पर यह दवा दी है। प्राप्त किया करते हैं कि उसॐ ॐ ही ध्वन्यात्मक अनेक अक्षरों की बदबड़ के पर उसमें शुद्ध लिखने में अध वृह ऋती है और अद्ध ॐ श्रृंद ठीक हिंदी लिख-पढ़ सकने के खिये दो वर्षे अखं हैं, तो उर्दू में उन्हें पाँच-छः वर्ष से कम नई दराते ६ अथा **६ वर्ष इ मैं लेहिं दालक शुद्ध लिस्त्रिं पढ़ेि ग्राहिं । पर अन्य क्षेत्र के ज्ञान-हित पढे वर्ष अस नाह”}सी दशा में हिंदी-भाष अर बाजार लिपि को भी वैसी ही जटिल और दुबई दन्त देने में हमें कोई भी दाम प्रतीत नहीं झोला । अतः हम हिंदी-हिए यह आवश्यक सम्झनें हैं कि एक ही शब्द नीचे लिखे हु अथवा ऐसे ही हैं जिस रूप में लिखा आय--- नायिक–नायो, नाइहे हैं। तसई-सतसई, शतसैय्या, शतमैयः, सतुपैया, सदसइयः ।। सूर्य-सूर्य, सृर्ज, सूरज । सकता-~~-सङ्ग । अङ्ग----अंग ! की –कीर्ति, कीरति है। विचार-–बिशर । - कैवी--कैकेई, कई, ॐकयी ।। वैए.---भेष, वेंश, बैश, भेरु, भैरव । महात्म्य--महात्म, महातम, माहात्म, महाग्छ । ई -इ, इर्षा, इख, इश, इरखा। क्षत्रिय--झी, छत्री । वार्म-धर्म, धरम । रस्म --समई ।। मद्धन–मन्डन, मंडल, इत्यादि-इत्यादि ।