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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-वनोद .., इन अनेक रूपों पर कोई उत्कट संस्कृतज्ञ महाशय चाहे जितनी न क- न्वावं, पर हिंदी में इन सबका बेधड़क व्यवहार होता है, और होना चाहिए। कोई आवश्यकता नहीं कि इनमें से कोई एक स्थिर रूप अटल मान लिया जाय। सच दुछिए तो हिंदी में शब्दों के शुद्ध रूप वे हैं जिनका साधारण पठित जन-समुदाय में व्यवहार होता हो, यथा द्धाल- टेन, इस्टेशन, बिहार, अलोप, असाल, अंजन, सिकत्तर, सोहैं इत्यादि। इनके स्थान पर यदि कोई जैटर्न, स्टेशन, विहार, लोप, अलायश, एजिन, सेक्रेटरी श्रीर शोमै लिखे, तो रियायत करके हम इन अयोगों को भान अवश्य लेंगे, पर उन्हें बेजा हने में कोई संत्र नहीं हो सकता । इनमें कई शब्द विशेषतचा विचारणीय हैं। आप चाहे जितना हैं, पर “बिहार” को साधारण जन-समुदाय कभी ‘विहार" ने कहेगा। हिंदी में ब का प्रयोग प्रचरता से होता है पर संस्कृत में यः व को छोड़ ब कम देखने में आता है। जहाँ हिंदी में “ब” का प्रयोग प्रचलित हों, वहाँ उसी का व्यवहार होना चाहिए ( यथा विहीरी, विकास, बल्ल इत्यादि ) 1हिंदी में शुद्ध संस्कृत शब्दों के प्रयोगों पर ज़ोर देना वैसा ही समझा जायगा, जैसे कोई अँगरेज़ी में लैटिन शब्द लिखने का आग्रह करे। क्या जान मिलटन' ॐ अँगरेज़ लॉग ऑनुस मिल्टनस लिखना पसंद करेंगे? हमें हिंदी में छानेकानेक लेखकों की आवश्यकता है, पर बहुतेरे अंग्रेज़ी पढ़े विद्न् संस्कृत-व्याकरण के पूर्ण नहीं होवे । अनेक केवल हिंदी जाननेवाले जोग भी भाषा की अच्छी सेवा किया करते हैं। यदि इन सब सहशियों के तिरस्कृत कर हिंदी- सेवा से विमुख कर दिया जाय, तो दस-पाँच पुराने पगड़बाज़ों को छौढ़ शायद किसी में भी हिंदी लिखने की पात्रता न समझी जायगी । यदि १५ वर्ष तक सिद्धांत-कौमुदी की फक्किका और महाभाष्य रटे विना कोई मनुष्य हिंदी को लेखक नहीं हो सकता, सो उसकी उकृति के लिये शायद एकदम हताश होना पड़ेगा।