पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१०

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६३० मध्यमिय। भाषा वो भाग ६च र मतिराम में किया ६ पैसा दिन्छी किसी काळ चाले किसी चि न दिप पाई। | समय अन्य विपके अतिरिका यी | कीं पर नायिका गंद के झग्य चमाने की परिपाटी सी पतु गई । अलंकार, पत्रनु आदि के अन्य पये रीति की पुस्त। में भी ऋगार रस का ही अद्य मशः गया। यद्यपि इप्त पछि में कार्रय का प्राधान्य गारतवर्ष में रहा और अच्छा समय था कि कवि पो पित 'गार' से उचट कर घर काध्य में श्ट जता, पर गार फायदा व शीव स्विी में प्रति दृढ़ हो चुकी थी कि थर दिली ६ ४) पर भी कार्य पयं उनके याधरदाता का ध्यान गर्ने घर, 3 न हटा और वीर एवं ऋगार देर रस की कांगता अब + पूचि सै द्वीती रद्दी । इस समय भारत में घर से चीर पुष चर्तमान घे । उनको साइन से चार कविता में अच्छा प्रदर पाया और आय पर्गन के अन्य की मात्रा-दि भी पुर्य दुई, पर इसके पीळ दैश मैकादरता a यदी, सी कुछ दिनों में धीर-अन्य का मन अन्य दी । इस कारण ऐसे बहुत से अन्य नष्ट हो गये और यहुत से जहां के त इवें पड़े हुए हैं। यही कारण है कि हिन्दी में चार- अन्य का दुल्य देते हुए भी चद् बघा दैनै मैं नहीं आने पर ऋचार अन्य से नी भाषा कयंता भरी दुईजान पड़ती है। प्रोङ माध्यमिक काल में प्राचीन दी हुई क-प्रासंगिक प्रटी की उरवि ने दुई। इसके आदि में स्वयं दुरदास, कुनधन, पर्य या नै या वहीं, पर अन्य किसी सुधि के देसा न किया । पीछे से भरेत्तमदास, तुलसीदास पर्व कंशवदास हे कपा-