पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

कुलपति ] पूयांकृत प्रकरछ । ३३१ जान पड़ता है कि इन कंघ कार्य की है िले न देख फर प्राचार्यय फी भी दृष्टि से देखना चाङ्गिए। फुलपति ने अपने ग्रन्थ में मम्मट के मत का सारांश पर है, परन्तु जहाँ इनका मम्मट से मतविरोध हैरत। धा, चदाँ ये महा- राज उपर पड़न भी कर देते थे। इन्होंने कचिता के लक्षण में मम्मट । न मान कर अपनी स्यान्न लक्षण लिम्रा है, और फई मेरी से शुद तर तीत ता है। अन्य चाय के लक्षण प्रायः सभी अशुद्ध हैं। पवित होगा कि भापाययों में केवल फुलपति ने पहले पहल काव्य को कुछ यधार्थ लक्ष्य लिखा । वह यह है:-- जग ते अद् त सुख सदन शय्वक अर्थ फवित्त ।। यह रूझ मैने किया समुझि अन्य चहु चित्त !! इसका अर्थ यह कहना चाहिए कि 'जिस चाय के अर्थ या शप्द था देानों के सुमने से अन्तरकिक आनन्द मिले, वइ फाय्य है। फोम-सायन छान चीन इन्होंने अनुतही अच् की है। काय का मर्यंजन अपने यह कहा है :- इस सम्पत्ति आनन्द अति दुरितन ६ मैय। वैरा फवित में चतुरई जगत राम वस देय ॥ काय फा कारगी यह है :- शब्द अर्थ तिन वन नीकी भाँति कवि। । सुधि झाचन समर्त्य तिन कारण आँवं चित्त । फाव्यांग में हैं:- व्यंग्य जीव ताके कहत शरद अर्थ है डैद । गुन गुन, भूपन भूषन, धूपन दूघन येत् ॥