पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१०५

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, पूर्जन गवा ! फुलपति ] ५२३ ६ में मुराद तेरी सूरत फी नूर दे। | दिल भरि पूरि रहें कहने जवाब । मेहेर का सालिज फ़कर मेरबान । • चातक य जायता है स्वाति बारें माध से । तु ते ६ मयानी राक्ष, का प्रज्ञाना तिने वैलि यॊ न दी सैर चीजिये सघाब से । देर फी म नाच ज्ञान घेत ६ काय घाल हयाती का प्रथम पाली मुख मद्दताव से इनकी प्राकृन मिथित भरपा का उदा; नीचे लिम्ब्री | जाता है। दुञ्जन न मन समय जिमि १८५ इनि कर । चढत समर इरि अमर कप थरघर म्गय घर है अमित दान दे जन धितान मा मह महल । चंद्र भान न सम प्रभान उडेय आहल ॥ राजाधिराज जयसिंह सुन बित्ति कियई सत्र जगत घस। अभिराम का सार लसत गहि रामसह फूरम पास ।। इस कवि की भापा वियोपसया मन भाया है, वे अच्छी है। - इनकी अज़भापा के उदाहरणार्य इम है। छन्द' भी लिन्नते हैं । । इन्हीं सुन्दै। फुपति जी के उत्तम छन्दै के ग उवाद्दर | समझना चाहिए !

  • च पर काजर का उपग मॉझ में नाक्षी तुही सन लायक ।

१ र थकी अँग सोद भये समुझ सति द्व न गिले सुखदायक है