पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१०७

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कविराज ] पुलवृन्ने प्रश्रय । १६१ उदारण 1 लिंग देह दिल करम फायै । तिन रमन ही मैच्च सुपायै ।। पुन्य कम सुख रुप रहावे । पाप नरक मिश्रित नर गावै ।। पंच भूत है कारने रूपा । तिनते फारज घिधिधि सरूपा ॥ दस अरू सात लिंग भालें। पुन अस्थूल पचीस प्रकाएँ ।' १४ ३०) कविराज सुखदेय मिन्न । ये महाशय भाषासाहित्य के आचार्यों में नेि जाते हैं। इन ६ जन्म अधवा मरण के संचत् नदी ज्ञात है सके, परन्तु अपने बनाये हुए है। हाथ के संवत् स्वयं इन्होंने १७२८ र १७३३ लिये हैं। ये ग्रन्ध्र प्रौद कया को पूरा परिचय देते हैं, अतः इमारा अनुमान है कि इनका जन्म संवत् १६९० के लगभग हु होगा पर संसद् १६६ सुफ इनका जाघित महना अनुमान-सिद्ध ३ । इन्द्र ने इस विचार में अपने जन्म स्थान कम्पिा का विस्तार- पूर्यमा खदिया चरिनया है और इन ग्रन्थ में अपने पूर्ष का भी गुरा दाल किंवा है। जान पद्धत हैं कि उस समय कॉम्पछा अच्छा नगर था। ये महाशय कान्यकुब्ज ब्राह्मण हिमवार के मित्र हैं। कमिंगला ही में इनफा विवाद भी हुआ था और इन जगाध मार चुला कीराम नामक दो पुत्र हुए। इनके चाधर लतपुर में अग्न भी धर्तमान हैं। यह गै। * कथनानुसार पंडित मापार प्रसाद दिवेदी ने सरस्वतैर की पंचम संख्या के ३२७ पृष्ठ से ३३७ पर्यंयन्त्र 'सुप्रिय मित्र का झ अच्छा जीवन-चरित्र ली है।