पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/११०

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मिश्रश्न्धुपिनाद। [सं० १७६८ ने नर्दी भी है, परन्तु द्विवेदी जी ने मिथ जी के चंश चाल से । उसका बनाया जाना प्रामागिक रीति से सुना है । अव कंपळ नयदिशा और दशरथ राय रह गये, से। इन फे दिप में स्वाज़ एवं शिवसिंहसरोज प्रामायिक न मानने का कोई कारखं नहीं है। अग्रामप्रकाश दम ने पूरः में देन्ना है। यद्द संवत् १७५५'में घना। इसमें व्यासदृश घेदन्ति फी मापा २३४ इयों में है । दुत्तविचार संवत् १७२८ में राजसिंह गैड़ के नाम पर चना । यथा :- जिस ६ अरजुन नै गैर गरीब नवाज । दियेा साज़ बहुतै फछु किया जिन्हें कविराज ।। | ( यहाँ ‘जिन्दै' से स्वय' कवि का प्रयोजन है, जे प्रसग से निकलता है।) संघन् सत्रह है पर अट्टाइस अति चम्।ि | जैट सुकुल तिथि पंचमी उपज्यो वृत्त चिचाम् । | इस ग्रन्थ में कल्पिली का बड़ा उत्तम वन है। इसमें प्रायः सद छन्दों के लक्षण एवं उदाहरण दिये हुए हैं। ऐसे उदाहरण में यह प्रधानता रक्षी गई है कि इन सब में अधिकांश चिराग प्रथया देयता के विषय पर कविता की गई है। अदु कहाँ एकघि छन्द गोपिका आाई के भी हैं ये पैसे भर से इवे हुए हैं, कि उनके भी पड़ने से मिश्र जी का क्रश्चित् आचरण प्रकट होता है। पिंगलविषयक मयिः सभी पाते इस ग्रन्थ में पाई। जाती हैं। इस में लिहा है कि निश्च झी में संस्कृत तथा प्राकृत में