पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/११२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

११० मिथ्यन्धुचिनाइ । [+ १७१६ ग्रन्थ हैं मर इसी रचना देने से इसके मित्र झा न होने में ६६ सन्द नहीं रहता । एमारे प्रन्य में हाई संयत् भद्द दिया है। उदाहर.-- करत मगन भूनि सम्पति अनेक प्रश्च यगन सलिल सुरसार कैसे। जस देत । रन अगिन है करत नारि छार, पुन सगन ६ अम जोरावरी जय धरि लेंत || तमन 'प्रकास झाली कर देस अनास, जन दिनेस सभ्य संघटन के नशेठ ! भगन सुधानिधि सुधा सा घरसत, अरु नगर्ने | फनन्द सबै सम्पति ३ क हेन । | फाज़िअप्रकार में बड़ी सनी ६ ६० पृष्ठ हैं। इसमें नृपव।, कविवश, नृपयश, गद्मामा मोर रसभेद् के वन हैं। यह संवत् १७३३ में चला था । मिश्र जी ने उपेमायें वन मार्यों की फी पर अनुदास जमादि का भी कुछ कुछ प्रयाग किया । वह भी इनका उत्कृष्ट अन्य ६ । इसमें भी कपिल्ला का वर्घन ६।। ननँद् निना, खानु माइके सिधारी, अहै न अधियार भरी सूझत न कर है। पीतम के गैन कविन न होति न दारुन वद्वत पनि लाग्यो मैप झय है। संग ना सहेली, वैस नवल अकेली, तन परी तलछा ना लाग्यो मैने पह है।