पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/११४

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भिभयन्धुधिनान् । [१४० १७३० गीतर ही ज्ञ लखी मुली अघ धादिर जारि राति न दार ६ । जान लो जीन्द गई मिल थे। मिल जाति यो दूध में दूध की धार ६ ॥ यौं घ की अचानक चाट | जु, ओट सर न स ॐ ठुकूल हैं। देद ६६, में पोरी परी सा कईयो नहिं जा ६ या दिय कुल ६ मॉम्स जराश में आने लग्यो । अ1िरात जहाँ उचष्म्यो भुज मूल है । वाम है याल १ वेलार अनेराले ! निसफ हैं पैसे घयत फूल है ।। शङ्कारता इन्होने मुरारि मऊ के राज्ञा दैवीपई के लिए घनाई थी। इस पुस्तक के विषय आदि का हाल इम कुछ नहीं जानने । प्रयामपकाश में विविध छदों द्वारा इन्ति का विषय इन किया गया है। इसके कुछ छन्दों का अन्तिम पद यह है कि तामधि प्रश्न चिदानंद झप। सु अतम प्र प्रकाश के हैं। दशरथ घ कै चिपय में हम कुछ नहीं जानते । मिथ ने मजभाषा में कविता की मार झमकादि का भी धेड थोड़ा प्रयोग किया। इनकी भाषा ग्रशसनीय है। हम इनकी दार कवि फी में रहते हैं। यहुन लाग इन बड़े महार और