पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/११५

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" ५३३ कालिदास] हुँचे हुए मनुष्य मानते हैं। इमरा मत एसके प्रतिकूल है। ये महाशय साधु प्रकृति अवय धे, परन्तु इनकी साधुता और महिमा वह अचे दरजे मी कदा मद्द जैसा कि सरस्वती से यति सा है। यदि मदनसिंह, दिममतसिंह आदि इनके दसै? के समान थे, ती इनाने यई फ्यों कहा है कि में उनका इम शिधाप मान कर ग्रंप बनाता हूँ ! फिर इन्होंने औरङ्गजेब से भरभर हेपी की स्तुति की है। उच्च मर्धारमा कुनभनदास है। अकबर नै हुला कर बड़ा सम्मान किया, तब भी उन्होने ग्रपनी असन्तुष्टि प्रकट करके कहा कि ‘सुन्तन का सिकरी सन काम ।। झाचत जान पनधि टूटी विसरगया हरि नाम । जिनके मुख से दुल उगजल तिनी फारेचे परी राम ।' (४३१) कालिदास चिचे। ' ठाकुर दिबस इ सेमर ने शिवसेसरीज्ञ में पाटिदार का जन्म संवत् १७५० माना है। इन के पुत्र उईनाथ उपनाम कधी मार पात्र हुलह भी अच्छे कवि है। गये हैं। ५ महाशय त्रिवेदी ( मान्यज) अन्तरघेद के रहने वाले थे। इन का प्रन्थ बार वधूवनोद हलिखित छमारे पास चर्तमान हैं। इसकी है।" मुद्र मो न । 'हु प्रति सन्सं च का फे म्योरा नहीं दिया है, परन्तु र दिपसिंह जी ने उसी अन्य कृ पक जयकरी इन्द लिना है जिसमें संवत् का चयन है।'