पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/११६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३॥ शिधयम्वद् । [ १६ १४२३ सम्यग्न सत्रह से उनचास ! पाठदास किय ग्रन्थ थिळारा ।। ज्ञान पड़ता है कि यह छन्द हमारे प्रति में भूल से छूट रहा है। इन्ने संवत् १९४५ में पारगजेब यो साय राह कर गैलकु'दा की | डाई का वन पिया। उस समय शाडू के सर्यि ऍाने से ज्ञान पड़ता है कि इन फी कपित्यशचि यद चुप थी, सो उस समय इन की ३५ वर्ष यी अपण घेवानी अनुमनि सिद्ध ६। अधिक अवस्था भी न थी फ्याकिं न ६ सय ग्रन्थ इस समय के पीछे बने । इस से प्रकट है कि कालिदास का जन्म सवत् ६७१० वि० के लगभग्र हुआ होगा। ये महाशय प्रेरग¥त्र के दुल में किस राज्ञा के साथ स. १७५५ फी वीज़ापुर राधा राग डाया लड़ाई में गये थे । इन देने रियासत के पारङ्गजेन ने इसी समय में पराजित करके जुम्त कर लिया । तब इन्हों ने यह छन्द बनाया :- गदन गर्दी से गढिमद्दल मी से महि वीजापुर ओप्पो इलमलि लुधराई में । कालिदास फाप्य धीर लिया अटमगर सौर तरचार गर्दा पुडुम पराई में । यूद ते निसि माह मडल घमंड मची देहू की हरि दिम गिरि की तराई में। गाडि के सुझदा आड कीन्ह पातसाद वातै | डकरी चमू हा गाल डा की ब्राई में । हरके पीछ कालिदास जी राजा गाजीतसिह जम्बूनरेश के यह गये, जिन के नाम पर स यत् १४९ में चारवभूबिन्द बना ।