पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/११७

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कालिदास] पूर्तत मरण । | १११ इस में प्रथम सूक्ष्मतया त्रिभंगा इत्यादिं छन्दै में नायिकाभेद करा गया है और फिर नाम के पश्चात् नायिकाभेद से मिले हुए थिय पर कविता की गई है। इसमें पांच अध्याय हैं, जिन में कुल मिलाकर घी सी छन्द ।। कविता के गुणों में यह झन्ध साधारण है। - एम का जैशीरानन्द नामफ घस घनाक्षरियै। पत्र पवा मुद्रित अथ भी हमारे पास मौजूद है। इसका काय आदरांय ४ 1 एन के बनाये हुए क़रीब ७० फुड छन्द हमारे पास है और राधामाधव बुधमिलनबिनैद नामक पक पर ग्रन्थ का नाम ब्राज में मिलता है। इन का संग्रह किया हुआ इजारा नामक एफ और भी ग्रन्थ है। यह ठाकुर दियसिंदजी के पुस्तकालय में वर्तमान है, परन्तु जहा तक हमें आते है अभी प्रकाशित भद्दी दुआ हैं मेर न इमने इसे चेन्ना हैं। शिवनि ६ जी ने लिया है कि इस में सं० १४८१ से लेकर सं० १९७६ तक के २१२ कविया के पूर्फ जार छन्द संग्रहीत i६ । इन की कविता सरस मेर । सानुशास एवं सराहनीय है। ये महाशप पद्माकर की भें मैं रथे जा सकते हैं। महाराज बलिदास ने ज़रिचकर हिन्दी-काव्य का इतिहास सम्पन्ध बड़ा इपकार किया है। पुरानै अग्नी से देश बन बड़े काम संकलते हैं, एक तो यह कि जिन कवियों के नाम उनमें अज्ञात । उन दें, समय के चिपस इतना निश्चय अवश्य हो जाता है कि वे संग्रह के समय से पीछे से नहीं हैं। फिर जिन फचिये ६ अन्य नहीं दारो, केवळ फुट उन्दू ही हैं, अपघा जिन के ग्रन्थ इतने 'चक नहीं देते फि ले उनकी बड़ी चाह करें', उन के नाम कुछ