पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/११९

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पूयॉप्तंबूरा प्रकरण । यमनी ] १३७ कालिदास नैसी लाळ मद्दमी के वुन्दन की चार नम्र चन्घन फी लाल अँगुरीन की। दैवी छध छान्नस ६ छाप । छान छ सुकन इरीन की जड़ाऊ पहुँचीन की ।। (४३३) रामजी ।। मावलिङ्घसरीज़ में इनका जन्म-संयत् १७२५ मना गया ६ मार यह कहा गया है कि रामजी के छन्' फालिदासज़ारा में मिलते हैं। इनका फोरे यतन्त्र ग्रन्थ सत्र में न लिन्ना है। गज़ में इनका घरयेनायकाभेद ग्रन्थ निला है और यहू भी ला है कि ये शहद फ़राबादी ६ मैं नचाच विपरमप्त के यहां ४ । जसमें इनकी मैदायश का संवत् १८०३ तथा यहविता का १८५० लिखा है। शायद ये वे ब्यक्ति हो, रम्यक ग्रेज़ में राम भइ र सञ्ज में रामजी है। जैा है । हमारे पुस्तकालय में 'शृङ्गारसैरम' नामक इनका एक हस्तलिक्षित अन्य भी चर्स- मान है, परन्तु दुर्भाग्यघश इसमें कई सन् संचव का ब्योरा नहीं है। इसमें करीब डेढ़ सैर के छन्द हैं। यह नायिका भेद यो अन्य ६। राम की कविता देखने से विदेत देता है वि. मैं पफ अच्छे घव ६ 1 इनकी कविता ललित और मार मधुर हैं। इनका इम ताप कवि का सफर समझते हैं। उदाहरणार्थं इनके दे। छन्द नीचे लिखें जाते हैं। चंचलताई तज्ञी न सबै गति पायन हून सिनाई भराल । छीनता बैकु, लही न संदै कटि पीना त्येही उरोज रसलन ॥