पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१२

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४३३ मिन्टुपिनाद । [सं० १६८ काल में पिये! नै दिन्दी का गापासण्यन्धी सामरयों से मुत करना अरिग्म किया। इस प्रकार माय अठिमपुर एवं मुर्छ होने लगी। फिर भी ये कविगप्प भाप बिगाड़ पर भापा टालिये लाने का प्रपदा नहीं करते थे। सारा यह कि इस काल में मापा अलंकृत हुई, धीर पर शृङ्गार की बुद्धि रही, आचार्ययता में परिपषता पाएँ, गरि पप कथा-मसंग शिथिल पड़े पर काव्यो की सन्तापदायक उन्नदि दुई। यह समय हिन्दी के लिए दो गरिव का हुआ । उन्नीसवाँ अध्याय (२७८) महाकवि सेनापति । | महात्मा तुलसीदास के पीछे हिन्दी में छः मशाकचि धाद्धे ही समय में डुप, अर्थात् सैन्धपति, त्रिद्वारीलाल, भूपया, मतिराम, मर, और दैव । इन सपियों की पीयूपपणी पापी ने हिन्दी जानने वाले संसार है। पूर्वतया प्यायित कर दिया और हिन्दी | भंडार की बूम परिपू किया। इनमें से सेनापति प्रथम श्रेणी के कवि हैं और शेष चार ते नवरत्न में परिगणित र छाल हुप हैं। विन्चकरिता के लिए इतने रब का कोई अन्य समय फनिता नै ठगेगा । इस अध्याय में एम इन्द कवियों में से प्रयम का वर्णन कुछ विचार के साथ घरते हैं।