पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१२०

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१३६ THध्रप्रन्धुपिते । रामजी घेत है। भुमही नगी अवै मातिन ६, र सान । मानन पाप सुधाधर की न भटू हि हैन एटू भये लान 1 उमड़ घुमड़ घन छाड़त मर्यपार | चंबा उदत ताई राति सरजि है। घरदी पपा भैंक पिक अप टेरन ६ धुन सुनि शान उॐ' दरनि लजि के म फ६ फवि राम हसि चमप, प्रदोवन की | पीतम र रद्दी में तैर बरनि थगि । लागे न तोचन xिना से मन भावन के सायन हुन अपि गरवि गनि यी ! नाम--(४ ३ ३) ईश्वरीप्रसाद झिपाठी, पौरनगर जिला सीतापुर । ग्रन्थ- रामबिलास रामायगए । का -कोल -१३०१ पिपरा--न्होंने पाश्मीर्षीय रामाययों का जथा इन्द्राद्ध किया हैं। इनकी रचना मनेादारिणी है। इन गणना तय . । यि ४ ॐ शी में । बदाइ । छदः सकल रिचे सिधि सुख संपदाहि विद्या भुमि सुमिरै गनेस गरि नंदुनै । सिन्दुर बरन सुढि साइर्द तिलक लाल सद् चलि भाल नन दैत ६ अनन्द ३ ॥ किदन्त भुजग विभूपए परशु पानि धार भ• • • हसि ।