पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१२१

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म छत्रसाफ ] पूर्वाञ्चल प्रकरगा। सुन्दर चिसाल तन ईसुरी सँभाव मन दया बन रन विस्वम दुग्न दुपनै ।। (४३४) महाराजा छत्रसाल । पक्षानरेश महाराजा छत्रसाल फी चौंरता वध दानशीलता जगप्रसिद्ध है । आप बुंदेला दाबी चम्पतिराय के पुत्र थे ! आप का भन्ने सं० १७०६ में हुआ था । आप ने एक साधारण घराने में जन्म शत परके केवल वाटुअल से हैं। करोड़ या मायं का विशाल राज्य उपाजित किया । इन महाराज ने सदा औरंगजेब हैं। ६ युद्ध करते हुए अन्न घटाया और चट्टे ६ युद्ध में मुगलों को गरास्त किया । मार देर हुये आप बड़े दानो और साहित्यसेवी भर थे। आप ने बड़े बड़े कविय का सम्मान किया और कहते हैं कि उमंग- चको एक बार भूपय कवि की पालकी का दंदा अपने कन्धे पर रख लिया । वड़े बड़े मा कपियेरै नै इनका यश गान किया है। आप स्वयं भी कविता करते थे। राजविनोद र गन का संद नमक पाप के दो अन्धे भी बीज में मिले हैं । अप फा रचनाकाल सं० १७३० से माना जा सकता है। इन महाराज का स्वर्गास सत् १७८८ में हुआ। ग्राप के उत्साह हैं हिन्दी-चिंता की बड़ा लाभ परेमा । बदार । इच्छा ६ अरनि विधिय ब्रज माइ चसय । । घाल दिलास दिषा रास रस रग रमाइय।..