पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१२५

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पूलंकृत प्रकरण । में अपनी अल निभाया है। अनुप्रास पर भी इनकी दृष्टि विशेष

  • रहती थी। हम इनफै। दास की ४ या में रखेंगे।

उदारयः ।। प्रबल पठान तू दलेल अनि ईलचान इन ते उलहिं चयापेर मनै हाते। छु। दादुर, अलीन धीर धरछोले झापहि वचाया है विलायत विलास ते ॥ कई घनस्याम युद्ध कीन्ह मेघनाद जैसे गड़ गैबिन्ददि छाडाथा नागासी है। फुभेदान पनपनी कुम्हेड़ा ककरी से काट कादि लाया काकाई पान फरि कासा ते ॥ पग माग भरत महीपर डिंगत : | इगमगत पुटुमि चटवत पन तैस कैं। उलट पलट लभल जलधि बढ़ कंपत अचर्कि अलफ्रेस के लेंस के । कई घनस्याम कच्छ मई की कहल हात इदल दल देत मद्दल पुरेल के। गढन दलव मृगराजन मल्लत मद झरत चलत गञ्ज बांधव मरेस से | छैठी चदि चाँदनी में चन्द्रमा बिशेफन है। उन्नत जन ते इछ रा प ।। ६मा मा केलिक तिच्या हे। अनश्याम रमा रति रूप देटिा धसकी धरा प । | -