पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१२८

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। ५० १७४८ उदाहरण । छतर्या इतिय स लगाये दुवै दुची जी में हुई के समाने गई थीति निसा १ । सा न भई नये नेश ६ देऊ विकाने रद्द ।। पट स्वार्छ नेयाज न भैार मर्य हरित धोस फी देऊ संकाने । उटि जैवे की देऊ डेराने र लपटाने हे पट ताने रई ॥ १ ॥ ऐरित धर्म सन आपस में जो कछु मन भायै नई कहती हैं। ए घरहाई लेागाई चचे निति चोख नेवाज हुम ददती हैं। भ्र चवरच भरी सुनि के रिस आयत में चुप ६ रहती हैं। कान्ह पियारे तिहारे छिये सिगरे, झज्ञ की ईंसिनी सती हैं २॥ नाम-(४ ४०) माइन विजय जैन जती अय्यदलपुर पट्टण। अन्य—मानतुङ्ग मानवी । कविताल-७४० । विवरण-कसल्या १४० विषय वैराग्य। नाम-(४४१) रसिक ! अन्य-चन्द्र कुँवर की घाचे ।। कविताका-३७१० । बियपा–कया। (४४३) वृंद आदि । ये महाशय सपतु १७३२ के लगभग दुर्भाचपचारिका, वृन्द- सतसई, मेयर मारदा नामक इनके तीन अन्य पोज में लिने । हैं। इनका “वृन्द सनस” नामक..सात सैर-घर का मोति