पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१२९

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पूँद 1 पूर्यास्वत शरण । सम्पन्ध एक श्लाघ्य ग्रन्थ हमारे पास है। इसमें मश मापा ३ द्दा द्वारा प्रायः भौति ः शौकै का अनुवाद किया गया है, अर्थधा जनश्च विगे या कद्दावन के आधार पर वाह की रचना की गई है। भाप इस अन्य फी अच्छी है गैइ यह ग्रन्थ शिक्षाप्रद एवं दैखने योग्य है । हम इस फर्षि की शेप फी झै शो में रसते है । उदाहरणार्थं कुछ दोहे नीचे देवे हैं:- फीकी ६ नीकी कपि समय विचार। सम्र की मग असित क व्यों विवाद में गाम से साकै भैगुन ६ जे जेहि माई नहि ।। तपित,कलंकी धिप गौ बिदिन ससिद्रि कद्दाहिँ ॥ सुनाई जे देत दुख हो लव दिन फा फेर। लक्षि सीतल सैयेाग में तपत विरह फी घेर ।। भुङ्गे पुरे सच एफ़ सम अही घालत ना६।। | ज्ञान परत है काग पिक रितु घसंत के भाई ॥ दिला की कदिप ने तेहिं नुर देय अवैध।। ज्यों नफटे के अरसो हेव दिशाप छोध । सबै सहायक प्रेग्नले के केउ न चल साय | पवन जगवत गिनि का दीपहि देत बुझाय । - उद्मम नहुँ न छेड़िये पर असा के माद।। मारिए से फारचे इनयै देशि पर्याद १४ छठ चल समय बिचार के अरि हुनिए अनया। किये अकेले दोन सुत निति पहिच फुल नसि ||