पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मिश्रबन्पनाद । । [२० ११६ ६, पल्नु यई फाई स्यगन्य अन्य नहीं है, परन, कवित्तरत्नाकर का एक तरंग मात्र है। कवितरक्षाकर का संपत् सेनापति ने ये लिया है:- सम्यद् सदसै छ । सेर सिया पछि पाय। सेनापति कविता सङ्ग सान सा सदाय ।। इस ग्रन्थ में पाँच वरंग हैं। प्रद्यम में ९४ छंद हैं और उसमें | ॐ प कश्तिा तथा रुप का कथन है । द्वितीय तरंग में ४४ छन्द द्वारा ऋगार रस की कविता है, एवम् तृतीय में ५६ ईन्द्रों द्वारा पटनु का पर्छन किया गया है। चतुर्थ तरंग में ७६ छेद हैं और उसमें रामायण का विपय वर्णित है तथा पंचम तरग में ५७ छ द्वारा भक्ति और शेप २७ छन्द द्वारा चित्र ययिता कही गई है । सेनापति नै निम्न छन्दै छाउ अपना परिचय दिया है और अपनी कविता की प्रशसा भी की है:- दीक्षित परशुराम दा ई विदित नाम जिन फीने यश की जग में बड़ाई है। गधर पिता गगाधर के समान शाके गगातीर बसत अनूप जिन पाई है । महः जान मन बिद्या दान हुने चिंतामन । हीरामनि दीक्षित तै पाई पंडिताई है। सेनापते साई सीतापति के प्रसाद जाकी' सध कवि कान ६ सुनत कबिताई है ॥