पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१४९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दैन]: पूलिंकृत प्रकरण । अह्मदर्शनपवाँसो, { १९ ) तत्वदनपचीसी, १२० } त्मिदर्शन- पचीसी, (२१ ] जगदर्शनपचीसी, (२) रसानन्दलहरी, (२३) प्रेमदीपिका, (३४) मिलविनाद, (२५) राधिकाविलास, (२६) मीतिशतक मैंर ( २७ } क्षशियमदन । सुक्षसागरत में मायिकाभेद का विस्तारपूर्वक घन ६ और काज्यरसायन एक उत्तम रीति-ग्रन्थ है, जिसमें प्रधानतया। पदार्थनिग, बस, पात्रांवचार, चाउँकार और पिंगल के बर्णन है । दैवम्याग्नच नाटक कॅाई नाटक नद्द हैं, परन्तु कुछ कुछ नाटक की भत किया गया है। रविलास और ज्ञरतिवेलास में पतियों का पर्णन मघाम ६ मैनः यह बहुत ही उत्तम प्रन्य ६ । प्रेमचंद्रिका में प्रेम का एक अनूठे प्रकार से वन किया गया है और वह सुर्ता- , नान घांसनीय है। देवचरित्र में कृष्पचन्द्रजी पी कथा फसध 'पर्यन्त कुछ विस्तार से पैर उसके पछि नितांत सुमप से कहीं गई हैं । सुन्दरसिन्दूर एक संग्रह् मात्र हे जे गारतेंदु ने देय की काँन्ना से पतत्रित किया था । रागरस्नाकर' में रागरागिभिर्यो' का अन् बयान । एयरममें दिम के प्रत्येक पद्दर र पट्टी पर, फाया की गई है। भावांवलास, भवानीबिलास, सुशानविनैद, मतर, कुयालघलास भाई भी अच्छे रीति-ग्रन्थ है। | मज़ा की कविता में जक्षम छन्दमदुत अधिकतासे पाये जाते हैं। इनकी भाप शुद्ध शभापा है और वह भाप-सम्धी प्राय अभी आभूप से सुक्षित है। इन्हा ने तुरंत मा ची माह रस्मै , बड़े घड़े विशेष एवम् लेकिमी की अपनी सरिता में अळी छटा दिलाई, ६ घर क़समें भी पूच खिळ६ ६ । नायिका