पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद २.pdf/१५०

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मिन्नयन्शुचिः । [१० १७१। ६ घन में ही में थान म्यान पर तसवीरे' ही धंदाई । यी ने में प्रयासरत भी पुग्न घय ६ र अमीरी ठाइ सामान " धन इन के घराघर, कार भी नहीं कर सका । इन्हा ने उपनाये वधुतही विलक्षण दी है। पर इनकें झपक बहुत अच्छ घने ६ । तुल सीदास, तूरदास मार देंच, इन सीन पियां में इस पर समझते है । ये तीनों महाशय शेष भापा-पदिय से वह घ चढे । ना चिप वृत्तन्ति मारे रचित चार ग्रन्थमादक मंदी प्रयोग द्वारा प्रकाशित नवरा में मिलेगा। उदाहर।। उञ्चल असइ पढ सातये महल मदा मंदिर सँघारी चन्द मंल . चाट्द ! भीतर ६ लालन पी जालन विसाल जाति घाहर हुन्डाई जग तिन के आट ही ॥ बरनत बानी र ढारत मचान कर जेरे रमा रानी राजे मन के टिहाँ। देय दिगपालन फी दृषी सुपट्टायनि ते राधे ठकुरायन में पायन पछाटही । शकी के हेत कीन्हे कैतुक कितेक तुम भीन्न परमः ॐ गये ही गड़ गति दी। | मिले मालि पनि लयंगन से हिलै हुरे दामिन पिले पुनि पांढर के घात ही ॥ कीन्ही रस के सह चूमत चमेली कि 'देव सैयतीन मांझ भूले भमरा ही।